अवच्छेदवाद के अनुसार जीव अविद्या रूप उपाधि से अवच्छिन्न चैतन्य ही है।
2.
सिर्फ़ घट में होने वाला आकाश घट से अवच्छिन्न यानी मर्यादित सा लगता है।
3.
हमारे देश एवं काल सम्बन्धी व्यवहार एक ही सर्वव्यापी ईश्वर-तत्व के विभिन्न उपाधियों द्वारा अवच्छिन्न होने के कारण सम्भव होते हैं।
4.
इन्होंने आध्यात्मिक योगशक्ति का विकास कर अध्यात्मविद्या की उस अवच्छिन्न धारा को जन्म दिया था जिसकी निष्ठा एवं अनुभूति आत्मानन्द की जनक थी।
5.
इन्होंने आध्यात्मिक योगशक्ति का विकास कर अध्यात्मविद्या की उस अवच्छिन्न धारा को जन्म दिया था जिसकी निष्ठा एवं अनुभूति आत्मानन्द की जनक थी।
6.
वैशेषिक मत के अनुसार काल एक ही है, परन्तु विभिन्न उपाधियों से अवच्छिन्न (सीमित) होकर वह विभिन्न काल खंडों में व्यवहृत होता है।
7.
पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् ॥ 1 / 26 ॥ पहलों का भी गुरु है, (उपदेष्टा है, वह ईश्वर) काल के द्वारा अवच्छिन्न न होने के कारण ।
8.
इस सम्बन्ध में रघुनाथ शिरोमणि तर्क करते हैं कि यदि विभिन्न उपाधियों से अवच्छिन्न होकर एक ही तत्व विभक्त रूप में व्यवहृत हो सकता है तो खंड-काल एवं खंड देश के व्यवहार के आधार के रूप में काल एवं देश रूपी दो भिन्न विभु तत्वों को मानने की क्या आवश्यकता है।