है, आपद्ग्रस्त होकर उसकी दया का भिखारी होताहै, सुख से संपन्न होकर उसके
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Tarunबहुत अच्छा लिख रहे हैं आदिवासी समाज और उसके निरंतर आपद्ग्रस्त होते जा रहे जीवन व संस्कृति के विषय में...
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इसके साथ ही एक आपात (इमरजेंसी) विभाग भी होना चाहिए जहाँ आपद्ग्रस्त रोगियों का, कम से कम, प्रथमोपचार तुरंत किया जा सके।
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इसके साथ ही एक आपात (इमरजेंसी) विभाग भी होना चाहिए जहाँ आपद्ग्रस्त रोगियों का, कम से कम, प्रथमोपचार तुरंत किया जा सके।
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और मध्य युग में राज-कुलों के आपद्ग्रस्त लोग तथा स्वतंत्रता की साधना करने वाले देशभक्त भी यहीं आत्मरक्षा के लिए छिपते रहे होंगे।
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सृष्टि सौंदर्य का रसपान करने वाले हमारे चित्त के आह्लादक साधन को प्रपात को-वैसा का वैसा रखने का, या हमारे आपद्ग्रस्त भाइयों को दुःख मुक्त करने के लिए उसका बलिदान देने का?
पीयूष जी, पोस्ट से लिंक करना बहुत अच्छा लगा.मेरे द्वारा पहले भी यही कहा गया था कि मानव धर्म हमको यही सिखाता हैकि हम किसी भी आपद्ग्रस्त की सहायता करें.परन्तु आज जब की बीमारी,घायल,प्राकृतक आपदा ग्रस्त होने के नाम पर भीख मांगना एक व्यापार बनता जा रहा है,जरूरत है उस पर यथासंभव नज़र रखने की न कि अपना मानव धर्म भूलने की.