आस्थावाद की ओर ले जाती है और इसके प्रभाव में वे नितांत दमनकारी और निराशा भरे
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संख्या-बल के ही कारण भारतीय लोकतंत्र जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद और (धार्मिक) आस्थावाद के अवसादों से ग्रस्त हैं।
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जनता की अनवरत संघर्ष चेतना से संबद्धता ही इन कवियों को क्रांतिकारी आस्थावाद की ओर ले जाती है।
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संख्या-बल के ही कारण भारतीय लोकतंत्र जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद और (धार्मिक) आस्थावाद के अवसादों से ग्रस्त हैं।
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जनता की अनवरत संघर्ष चेतना से संबद्धता ही इन कवियों को क्रांतिकारी आस्थावाद की ओर ले जाती है और इसके प्रभाव में वे नितांत दमनकारी और निराशा भरे माहौल मे भी अपने शब्दों को अँधेरे में नहीं छोड़ने का निश्चय करते हैं।
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जनता की अनवरत संघर्ष चेतना से सम्बद्धता ही इन कवियों को क्रांतिकारी आस्थावाद की ओर ले जाती है और इसके प्रभाव में वे नितांत दमनकारी और निराशा भरे माहौल मे भी अपने शब्दों को अंधेरे में नहीं छोडने का निश्चय करते हैं.
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वे किसान को परिवर्तन के लिए उकसाते हैं-“काटो, काटो, काटो करबी साइत और कुसाइत क्या है जीवन से बढ़ साइत क्या है मारो, मारो, मारो हंसिया हिंसा और अहिंसा क्या है जीवन से बढ़ हिंसा क्या है!” केदार के इस आस्थावाद को क्या कहा जाय?