हर सुबह मैं देखती हूँ दर्पण में अपना चेहरा कैसा विलक्षण है यह! काले रेशमी बाल, छाये सर पर दो आँखे, झरोखे आत्मा के पलकें, खुलने-बंद होने को मुक्त घनी भोंये आँखों का सटीक ढक्कन ऊंची उठी नाक बीन्चों-बीन्च मूंह जैसे पंखुड़ी गुलाब की कान सजे दोनों ओर! आँखे कहती हैं-यह दीखता है सुन्दर नाक कहती है-यह गंध है अद्भुत जीभ कहती है-यह स्वाद है बढ़िया कान कहते हैं-यह आवाज़ है मधुर! बाईबिल कहती है कि-इश्वर ने बनाया मानव को अपने जैसा.