किंतु स्मार्टफोन तकनीकि, व अति परिवर्तनीय संचारप्रणाली के साथ सामंजस्य के अभाव में व अपने व्यवसाय प्रतियोगियों की तेज प्रगति व तेज विकसित तकनीकि प्रणाली व बाजार की बदलती माँग की अनदेखी से उन्हें मोबाइल सेट व्यवसाय में औंधे मुँह गिरना पड़ा, और देखते-देखते नोकिया नंबर एक से कहीं पीछे छूटकर फिसड्डियों की जमात में पहुँच गया है।
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खासकर इसके असर से भगोड़ी पूँजी का ' अपने पनहि ' करना, यानी खतरे के असर क्षितिज पर आते ही नौ दो ग्यारह हो जाना, निर्यातकों की आय घटना, शेयर कीमतों का औंधे मुँह गिरना, विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी, कल-कारखानोें की उत्पादन बढ़त दर की गिरावट, भारतीय मुद्रा की अस्थिरता, आयात में कमी, माँग में कमी, व्यापक स्तर पर छँटनी, नयी नौकरियों के लाले पड़ने आदि के रूप में मंदी के बहुमुखी कुप्रभावों की चर्चा की गयी है।