इस प्रकार का साहित्य पढ़ना तो वास्तव में समय का दुरुपयोग करना एवं अपनी आत्मा को कलुषित करना है ।।
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मित्र माही, हम जीत के आनंद को अपनी कटु वाणी से कलुषित करना नहीं चाहते थे, मगर क्या करें? कोई सुननेवाला नहीं है..
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हरानबाबू ने समझा कि उनकी बातों का बड़ा असर हो रहा है ; उन्होंने दुगने उत्साह के साथ कहा, '' दीक्षा! दीक्षा जीवन का कितना पवित्र मुहूर्त है, यह क्या आज मुझे बताना होगा? उस दीक्षा को कलुषित करना!