तुम्हारी कल्पित मूर्ति नित आँखों के सामने रहती है।
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वह उस कल्पित मूर्ति के उपासक थे, कविताओं में उसका गुण गाते,
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कहने की आवश्यकता नहीं कि यह कल्पित मूर्ति भी विशेष ही होगी-व्यक्ति
6.
आवश्यकता नहीं कि यह कल्पित मूर्ति भी विशेष ही होगीव्यक्ति की ही होगी।
7.
यदि किसी से प्रेम न हुआ तो सुंदरी की कोई कल्पित मूर्ति उसके मन में
8.
लोगों के भीतर छिपा हुआ शैतान जब समझता है कि दूसरों के भीतर भी शैतान बसा है, तब उसकी उस कल्पित मूर्ति को सिर झुकाये बिना नहीं रहता, फिर बाहर से चाहे जो कहे! और बातरा के भीतर जीवन-शक्ति उमडने लगी, उसकी वह उत्कंठा घनी होने लगी-कभी-कभी रात में वह न जाने कैसा स्वप्न देखकर चौंक उठती और अपना भीगा हुआ सिर दामू के कन्धे में छिपाकर अपना बोरिया का टुकड़ा कुछ दामू के ऊपर भी खींचकर जरा-सा काँपकर फिर सो जाती...