जब कश्मीर घाटी के लोग और वहां के नेता ही बाक़ी दुनिया की रफ्तार से क़दम मिलाना ही नहीं चाहते हैं तो उस स्थिति में आख़िर उनकी किस तरह से मदद की जा सकती है.
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हल्ला मचाना अलग बात है मगर साथ चलकर क़दम मिलाना और बात है देखते हैं कि कितने लोग साथ आते हैं राहुल जी! आपका आभार कम से कम आपने यह पोस्ट न केवल पढ़ी बल्कि प्रतिक्रिया भी की वर्ना तो सुबह से अब तक कोई इसे देखने तक की ज़ेहमत नहीं उठाई