' ' चोर, शराबी, मित्र द्रोही, ब्रह्मघाती, गुरू पत्नीगामी, ऐसे लोगों का संसर्गी, राजा, पिता और गाय को मारने वाला, कोई जैसा और चाहे जितना बड़ा पापी हो, सभी के लिए यही, इतना ही बड़ा प्रायश्चित है कि भगवान के नामों का उच्चारण किया जाए, क्योंकि इनके उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान के गुण, लीला और स्वरूप में रम जाती है और स्वयं भगवान के प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है।