| 1. | मूल चाहे इन रूपों का कृदन्त ही हो,
 
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 | 2. | पूरबी बोलियाँ भूतकाल में कृदन्त रूप नहीं लेती हैं,
 
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 | 3. | भूतकालिक कृदन्त विशेषण के लिए: 1. नियम: अंतिम अक्षर:
 
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 | 4. | इस प्रकार के उदाहरण में ' कइले' शब्द वस्तुतः भूत कृदन्त (
 
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 | 5. | उपर्युक्त पंक्तियों में सिद्धों ने वर्तमान भूतकालिक कृदन्त प्रत्यय ” इल ' का प्रयोग किया है।
 
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 | 6. | इस कार्य हेतु ‘ ल्युट् ' कृदन्त प्रत्यय उपलब्ध है, जिसके प्रयोग के दो-चार उदाहरण ये हैं:
 
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 | 7. | उदाहरणर्थ: ‘ तुमुन् ' एवं ‘ क्तवा ' धातुओं के साथ प्रयोजनीय कृदन्त वर्ग के दो प्रत्यय हैं ।
 
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 | 8. | वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्यय-त, तु (खात, खातु), भूतकालिक ओ (गओ), क्रियार्थक संज्ञा-न, नु, नो, बो (चलन, चलनु, चलनो, चलिबो),
 
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 | 9. | वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिन्दी में मुख्यतः कृदन्त और कुछ तद्धितान्त शब्दों का प्रयोग होता है, तिङन्त शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं होता ।
 
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 | 10. | तकनीकी क्षेत्र में शब्दावली निर्माण हेतु हमें केवल कृदन्त एवं तद्धितान्त रूपों की ही आवश्यकता पड़ती है जो सामान्यत: संज्ञा या विशेषण होते हैं ।
 
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