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कृष्णदास कविराज वाक्य

उच्चारण: [ kerisendaas keviraaj ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • इस ग्रंथ को श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने रचा था।
  • इस ग्रंथ को श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने रचा था।
  • चैतन्य चरितामृत में कृष्णदास कविराज ने इस घटना का जिक्र किया है।
  • चैतन्य-चरितामृत में कृष्णदास कविराज ने दोनों गोस्वामियों के अवदान के सम्बन्ध में लिखा है-
  • कृष्णदास कविराज ने चैतन्यचरितामृत में इसीलिये इनका उल्लेख नित्यानंद प्रभु की शिष्यशाखा में किया है।
  • उन्होंने मिलकर कृष्णदास कविराज गोस्वामी से चैतन्य महाप्रभु की शेष लीला वर्णन करने का आग्रह किया।
  • गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत।
  • [2][3][4] गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत।
  • ↑ नित्यानन्ददास के प्रेम-विलास ' में उल्लेख है कि राधाकुण्ड में कूदने के साथ ही कृष्णदास कविराज के प्राण निकल गये।
  • [2] [3] [4] गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत ।
  • संस्थान को इस बात पर गर्व है कि उसके पास रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी तथा कृष्णदास कविराज की हस्ताक्षरित पाण्डुलिपियाँ हैं।
  • यहाँ सर्वश्री रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी तथा कृष्णदास कविराज गोस्वामी कुटी एवं इस्कान के संस्थापक श्रीभक्तिवेदांत प्रभुपादजी की प्राचीन भजन कुटी भी इसी परिसर में हैं।
  • यहाँ सर्वश्री रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी तथा कृष्णदास कविराज गोस्वामी कुटी एवं इस्कान के संस्थापक श्रीभक्तिवेदांत प्रभुपादजी की प्राचीन भजन कुटी भी इसी परिसर में हैं।
  • श्रील कृष्णदास कविराज ने कहा है, ‘जिसने भारतभूमि पर मनुष्य के रूप में जन्म लिया हो उसे (भक्ति द्वारा) अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और परोपकार के लिए काम करना चाहिए।'
  • पर उन्हें विदा करने आये थे श्रीजीव, गोपालभट्ट, लोकनाथ, भूगर्भ, राधव पण्डित, यादवाचार्य, परमानन्द भट्टाचार्य, मधु पण्डित, कृष्णदास कविराज, द्विज हरिदास, पंडुरीकाक्ष प्रभृति।
  • कभी भद्रवन में रहते, कभी नन्दीश्वर के निकट, कभी गोवर्धन की तलहटी में सनातन गोस्वामी के भजन-कुटी में और कभी राधाकुण्ड में रघुनाथ दास गोस्वामी और कृष्णदास कविराज के सान्निध्य में।
  • चैतन्य महाप्रभु और राय रामानंद के मिलन का जो वर्णन चैतन्य संप्रदाय के कृष्णदास कविराज ने “चैतन्य चरितामृत” में किया है उससे पता चलता है कि मधुर भक्ति के रहस्यों से दोनों पूर्ण परिचित थे।
  • इसके अलावा यहां भारत के समस्त गौडीय मठों के संस्थापक श्री भक्ति सिद्धान्त सरस्वती, श्रीलजीव गोस्वामी, श्री कृष्णदास कविराज, श्रीलभूगर्भ गोस्वामी एवं आचार्य श्रीलगौरा चांद गोस्वामी समेत गौडीय सम्प्रदाय के अनेक सिद्ध संतों व वैष्णवों की समाधियां भी हैं।

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