खग वृन्द बनें चारण जहाँ पर लघु वारिद खंड करते अभिषेक | मृदु नीर भी अमृत सम उत्तम शीत मंद पवन भी हुई उन्मत्त अलका जी, सादर प्रणाम! आपकी उन्मादिनी कविता पर मैं क्या करूँ अभिव्यक् त.
बसंत ऋतु आई है.... (घनाक्षरी छंद) गायें कोयलिया तोता मैना बतकही करें, कोपलें लजाईं, कली कली शरमा रही | झूमें नव पल्लव, चहक रहे खग वृन्द, आम्र बृक्ष बौर आये, ऋतु हरषा रही| नव कलियों पै हैं, भ्रमर दल गूँज रहे, घूंघट उघार कलियाँ भी मुस्कुरा रहीं | झांकें अवगुंठन से, नयनों के बाण छोड़, विहंस विहंस, वे मधुप
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रहे सुखी सारा संसार खग वृन्द का सुरमई गान कलियों पर करते भौंरे रसपान! खिल खिल हर कली मुस्काति पिय पवन को मान दिखाती! हर बेल हो गयी उत्श्रृंखल तरु शिखर को बढती पल पल! शुभ संदेश की चली बयार पलाश भुल गय अपनी हार! पतझड़ से उतरा हरित वसन छाया बसंत ने लाल बदन मन [...] मेरी कवितायें खग वृन्द का सुरमई गान
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रहे सुखी सारा संसार खग वृन्द का सुरमई गान कलियों पर करते भौंरे रसपान! खिल खिल हर कली मुस्काति पिय पवन को मान दिखाती! हर बेल हो गयी उत्श्रृंखल तरु शिखर को बढती पल पल! शुभ संदेश की चली बयार पलाश भुल गय अपनी हार! पतझड़ से उतरा हरित वसन छाया बसंत ने लाल बदन मन [...] मेरी कवितायें खग वृन्द का सुरमई गान