हमारा मतदाता व्यवस्था के विरुद्ध आग उगलते और तलवारें भंजाते नेताओं के चुनावी भाषण सुनकर चाहे जितनी भी तालियां बजाए, नवीनतम (कर्नाटक) चुनावों में सिविल सोसायटी द्वारा उतारे अधिकतर साफ-सुथरे युवा उम्मीदवारों की हार इस बात का सबूत है कि ऐन समय पर दागी उम्मीदवारों को हराने की बजाय चंचलचित्त जनता अक्सर जाति, धर्म की पुरानी मक्खियां ही निगल लेती है।