जिस प्रकार चंचल मृग वीणा के स्वरों से मुग्ध होकर चौकड़ी भरना भूल जाता है, उसी प्रकार साधक का चित्त नाद के प्रभाव से चंचलता छोड़कर स्थिर हो जाता है।
2.
जिस प्रकार चंचल मृग वीणा के स्वरों से मुग्ध होकर चौकड़ी भरना भूल जाता है, उसी प्रकार साधक का चित्त नाद के प्रभाव से चंचलता छोड़कर स्थिर हो जाता है।
3.
पर शेर सामने दिखलाई पड़ा नहीं और उसकी गरज कानों में पड़ी नहीं कि वह अपनी चौकड़ी भूला नहीं, शेर पास आता है और पास आकर उसको चीर फाड़ डालता है, पर चौकड़ी भरना दर किनार! हरिण इस घड़ी अपना पाँव तक नहीं उठा सकता, एक डग भी आगे नहीं बढ़ा सकता, इस घड़ी वह ऐसा हो जाता है, जैसे कोई किसी का हाथ-पाँव बाँध देवे।