है, यहाँ च्युतसंस्कृति या पतत्प्रकर्ष है' कोई आलोचना नहीं।
2.
पुनरुक्ति, च्युतसंस्कृति आदि अनेक दोष भी यत्र तत्र ढूँढ़े जा सकते हैं।
3.
पुनरुक्ति, च्युतसंस्कृति आदि अनेक दोष भी यत्र तत्र ढूँढ़े जा सकते हैं।
4.
भाषा जिस समय सैकड़ों कवियों द्वारा परिमार्जित होकर प्रौढ़ता को पहुँची उसी समय व्याकरण द्वारा उसकी व्यवस्था होनी चाहिए थी कि जिससे उस च्युतसंस्कृति दोष का निराकरण होता तो ब्रजभाषा काव्य में थोड़ा बहुत सर्वत्र पाया जाता है।