सबने देखा, सरोज वाक़ई दरवाज़े में डरी सहमी खड़ी थी | उसे देखकर बुआ ने और भी ज़ोर ज़ोर से बोलना शुरू कर दिया “ अरे सब जान्नूँ हूँ मैं … ये दीददे खुले रेवें हैं मेरे और कान भी … अरे सारे नजीबाबाद में थू थू हो रई है छिनाल … एसई जवानी का बुखार है तो निकल जा ना मूँ काला करा के … सब जान्नें हैं अक उस कुत्ते हरीश के साथ क्या गुलछर्रे उड़ा के आई है …