इसपर अनेक टीकाएँ मिलती हैं जिनमें भर्तृहरि की त्रिपादी, कैयट का प्रदीप और शेषनारायण का “सूक्तिरत्नाकर” प्रसिद्ध हैं।
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इसपर अनेक टीकाएँ मिलती हैं जिनमें भर्तृहरि की त्रिपादी, कैयट का प्रदीप और शेषनारायण का “सूक्तिरत्नाकर” प्रसिद्ध हैं।
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उत्तराषाढ़ा को त्रिपादी नक्षत्र कहते हैं क्योंकि इसके एक चरण धनु में और तीन चरण मकर में होते हैं (
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प्रथम अध्याय से लेकर आठवें अध्याय के प्रथम पाद तक को सपादसप्ताध्यायी एवं शेष तीन पादों को त्रिपादी कहा जाता है।
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प्रथम अध्याय से लेकर आठवें अध्याय के प्रथम पाद तक को सपादसप्ताध्यायी एवं शेष तीन पादों को त्रिपादी कहा जाता है।
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प्रथम अध्याय से लेकर आठवें अध्याय के प्रथम पाद तक को सपादसप्ताध्यायी एवं शेष तीन पादों को त्रिपादी कहा जाता है।
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इसपर अनेक टीकाएँ मिलती हैं जिनमें भर्तृहरि की त्रिपादी, कैयट का प्रदीप और शेषनारायण का “ सूक्तिरत्नाकर ” प्रसिद्ध हैं।
8.
पाणिनि ने पूर्वत्राऽसिद्धम् (8-2-1) सूत्र बनाकर निर्देश दिया है कि सपादसप्ताध्यायी मे विवेचित नियमों (सूत्रों) की तुलना मे त्रिपादी मे वर्णित नियम असिद्ध हैं।
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पाणिनि ने पूर्वत्राऽसिद्धम् (8-2-1) सूत्र बनाकर निर्देश दिया है कि सपादसप्ताध्यायी मे विवेचित नियमों (सूत्रों) की तुलना मे त्रिपादी मे वर्णित नियम असिद्ध हैं।
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पाणिनि ने पूर्वत्राऽसिद्धम् (8-2-1) सूत्र बनाकर निर्देश दिया है कि सपादसप्ताध्यायी मे विवेचित नियमों (सूत्रों) की तुलना मे त्रिपादी मे वर्णित नियम असिद्ध हैं।