द्वा सुपर्णा वाक्य
उच्चारण: [ devaa supernaa ]
उदाहरण वाक्य
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- ' ' द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
- द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषष्वजाते ।
- द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते ।
- जैसे-द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते I
- इसे ‘ द्वा सुपर्णा सयुजा सखायौ ' कहा गया है।
- ॠग्वेद के ' द्वा सुपर्णा '-मन्त्रांश से भी त्रिविध अज तत्त्वों का दर्शन प्राप्त होता ही है।
- द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया ० इस सुप्रसि द्ध मंत्र में द्वैतवाद (पुरुष-प्रकृति) का नि र्देश प्राप् त होता है ।
- ' द्वा सुपर्णा... ' चलिए, चलिए बहुत हो गया, आपको आंखों देखी बताने के चक् कर में हमारी ट्रेन न छूट जाए।
- आइए त्रैतवाद के उस मंत्र का हम स्वयं उच्चारण कर के देखें कि हमारी सृष्टि के लिए कितना महत्वपूर्ण है-द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते।
- मुख्य दरवाजे पर जड़े पीतल पर उकेरे अनार का दाना खाते एक तोते की आकृति देखकर मुझे औपनिषदिक ‘ द्वा सुपर्णा ‘ के जीव-तोते की याद आ गई।
- जहां तक काव् य की बात है तो शुरूआत ही ' मा निषा द... ' के पक्षियों से होती है और ' द्वा सुपर्णा... ' के स् तर तक पहुंचती है.
- द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया-इस वैदिक उद्गान में दार्शनिक मन्तव्य से अलग व्यावहारिक अवधारणा यह भी है कि सोने के पंख वाले, स्वभाव से किंचित् भिन्न दो पक्षी एक डाल पर आत्मीय होकर रह सकते हैं।
- द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं [ऋग्वेद] यहाँ पर हर शब्द एक वचन का बोध कराता है यानि एक शरीर में दो प्रकार के गुण वाला परमात्मा रहता है जो एक ही है भिन्न भिन्न यानि दो नहीं अथवा यही आत्मा भी है.
- कह सकते हैं कि एकान्त ' भोक्ता ' कम से कम दर्द के मामले में अभी तक नहीं हुआ: पर्यवेक्षक या विश्लेषक चित्त हमेशा जागता रहा है और देखता रहा है कि क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है, जो भोगा जा रहा है वह कैसे भोगा जा रहा है... (द्वा सुपर्णा...)
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