संविधान द्वारा राष्ट्रपति को तीन प्रकार की न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार से है-
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संविधान द्वारा राष्ट्रपति को तीन प्रकार की न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार से है-
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घटनास्थल पर तुरन्त न्याय 34. 1 मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग में न्यायाधीशों को नियुक्त करते हुए इन्हें न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की जाएँगी और निम्न तीन प्रकार के मामलों में
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34. घटनास्थल पर तुरन्त न्याय 34.1 मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग में न्यायाधीशों को नियुक्त करते हुए इन्हें न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की जाएँगी और निम्न तीन प्रकार के मामलों में घटनास्थल पर ही अस्थायी न्यायालय स्थापित कर दोषियों को...
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न्यायिक शक्तियाँ-संविधान का 72 वा अनु राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर दे यह शक्ति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजाऑ के विरूद्ध अथवा सजा दंड जो ऐसी विधि के विरूद्ध मिली हो जिसे संसद ने पारित किया हो।
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न्यायिक शक्तियाँ-संविधान का 72 वा अनु राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर दे यह शक्ति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजाऑ के विरूद्ध अथवा सजा दंड जो ऐसी विधि के विरूद्ध मिली हो जिसे संसद ने पारित किया हो।
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34. 1 मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग में न्यायाधीशों को नियुक्त करते हुए इन्हें न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की जाएँगी और निम्न तीन प्रकार के मामलों में घटनास्थल पर ही अस्थायी न्यायालय स्थापित कर दोषियों को सजा देने का अधिकार इन आयोगों को दिया जाएगा-1) महिलाओं एवं बच्चों पर अत्याचार, 2) सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर अत्याचार और 3) पुलिस या प्रशासन द्वारा अत्याचार।
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अनुच्छेद 76 में आगे कहा गया है कि समस्त न्यायिक शक्तियाँ एक सर्वोच्च न्यायालय और विधि द्वारा स्थापित अधीनस्थ न्यायालयों में निहित होंगी | न तो कोई विशेष ट्राइब्यूनल बनाया जायेगा और न ही किसी कार्यपालक एजेंसी या अंग को अंतिम न्यायिक शक्ति दी जायेगी | [भारत में न्यायिक न्यायालयों से ज्यादा संख्या में ट्राइब्यूनल्स कार्यरत हैं और इस प्रकार न्यायिक क्षेत्र में राज्य कार्यपालकों का हस्तक्षेप दिनों दिन बढ़ रहा है जिसे न्यायालयों का भी मूक समर्थन प्राप्त है |]