पराशर गौर वाक्य
उच्चारण: [ peraasher gaaur ]
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- पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख
- ‘ पराशर गौर ' की अन्य रचनायें
- पराशर गौर मार्च 15. 2005-
- उस दिन मै आस्थाई हो जाउंगा! पराशर गौर!
- पराशर गौर, गढ़वाली भाषा के चलचित्र-निर्माता, कवि, और कलाकार हैं।
- (पराशर गौर की अन्य कविता कविता)
- पराशर गौर दिनाक २० सितम्बर ०९ समय सुबर ११. १४ पर
- बगत बदली गे! बोलियल ना मिमु टैम नी! त्वी ऐजा बस! पराशर गौर सुबह ९.३० पर २०१०
- नि बिंगा?? खत्यु च खत्यु! पराशर गौर मई १४ स्याम ५ १७ पर २०१० वापसी! बर्षो का बाद,आज....
- तब, कोई नही मरेगा और नहीं मारेगा वो........ जियेगा एक सुनहरे भविषय के लिए! पराशर गौर ५ फरबरी २०१० ३.४५ दिन में __________________________________________________________________
- मंत्री ऐजाला! ये किक नि हुन्दन ये एक औरी पछ्यण च! ईनी कै बता ओउरी भी छन! पराशर गौर नम्बर १६ दिनम ११.५५ पर
- बड़ा कामू नतीजा बड़ो ही हुन्द! अबतक त भीतरी भीतर च! अब द्याखा, कख वे का उ काम वे थै कख लिजन्दीन! पराशर गौर
- आबत वेल बाय्कैदा बाबा बाण नै की एक इंस्टीटुयुशंन भी खी याल जख हर साल एक ना की बाबा निकल दी! पराशर गौर नमम्बर २८ ०९ सुबह १०.२३
- मै चिदम्बर, अडवानी और अब मनमोहन पर भी कौन चला मै? पराशर गौर अधूरे सपने अधूरे सपने पाराशर गौड़ गोपी भारत में इन्जीनियर था और मधु एक ट्रेण्ड टीचर।
- उत्तराखंड मे पहली बार बड़े परदे का फिल्म बनाने के साहस १९८३ में सबसे पहले ” श्री पराशर गौर जी” ने किया था! उन्होंने उत्तराखंड की पहली फीचर फिल्म
- होने दो... पराशर गौर ६ मार्च २०१० सुबह ७.२७ पर हसिकाए कबिता क्या होती है मन मोहन जी ने गौड़ से कहा एक बात बताये “ कबिता क्या होती है?” गौड़ बोले..
- ग्रामों की लोक-संस्कृति और स्थानीय लोगों की सामाजिक-आर्थिक परेशानियों के समायोजन का निरन्तर चलचित्रों में प्रदर्शन होता रहा जिसका आरम्भ पराशर गौर के १९८३ के चलचित्र “जगवाल” से हुआ जो २००३ में “तेरी सौं” के प्रथमोप्रदर्शन (प्रीमियर) तक हुआ।
- ग्रामों की लोक-संस्कृति और स्थानीय लोगों की सामाजिक-आर्थिक परेशानियों के समायोजन का निरन्तर चलचित्रों में प्रदर्शन होता रहा जिसका आरम्भ पराशर गौर के १९८३ के चलचित्र “जगवाल” से हुआ जो २००३ में “तेरी सौं” के प्रथमोप्रदर्शन (प्रीमियर) तक हुआ।
- मै ही क्यों मर रहा हूँ! अनुबादक पराशर गौर सितम्बर १० दिनमे ३.३४ पर अस्थाई हूँ मै! अस्थाई हूँ मै!! मेरा गाँव अभी वही है वे चोराहे,वो पगडंडिया वो खेत अभी भी वही है!
- ग्रामों की लोक-संस्कृति और स्थानीय लोगों की सामाजिक-आर्थिक परेशानियों के समायोजन का निरन्तर चलचित्रों में प्रदर्शन होता रहा जिसका आरम्भ पराशर गौर के १९८३ के चलचित्र “जगवाल” से हुआ जो २००३ में “तेरी सौं ” के प्रथमोप्रदर्शन (प्रीमियर) तक हुआ।
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