यह पुनराविष्कार असल में उस काव्य-चेतना के पुनः संयोजन से संभव हुआ लगता है जिसमें “तत्वदर्शी देखता है एक मरीचिका की अवधि में / प्यास को अथाह हो जाते एक बूँद की परिधि में” और जहाँ उसका काव्य-पुरुष अपने सम्पूर्ण वैविध्य और एकत्व में उपस्थित होता है।
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सेवा से निवृत्ति के बाद, 747 नंबर दो अपने पर, में लाइन उत्पादन दो को खोल कर अलग-अलग किया गया और नामयांग्जू ग्योंगी-दो दक्षिण कोरिया भेज दिया गया था, जहाँ उसका पुनः संयोजन किया गया और मोकपो, दक्षिण कोरिया में एक रेस्तरां में परिवर्तित कर दिया गया.
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यह पुनराविष्कार असल में उस काव्य-चेतना के पुनः संयोजन से संभव हुआ लगता है जिसमें ' ' तत्वदर्शी देखता है एक मरीचिका की अवधि में / प्यास को अथाह हो जाते एक बूँद की परिधि में '' और जहाँ उसका काव्य-पुरुष अपने सम्पूर्ण वैविध्य और एकत्व में उपस्थित होता है।
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सेवा से निवृत्ति के बाद, 747 नंबर दो अपने पर, में लाइन उत्पादन दो को खोल कर अलग-अलग किया गया और नामयांग्जू ग्योंगी-दो दक्षिण कोरिया भेज दिया गया था, जहाँ उसका पुनः संयोजन किया गया और मोकपो, दक्षिण कोरिया में एक रेस्तरां में परिवर्तित कर दिया गया.
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इसके बाद फिर एक लय उभारी गयी है, जादू टूटना, सूर्योदय का होना के पुनः संयोजन से पूर्ववर्ती लय के साथ संघात से बीट्स उत्पन्न कर दिये गये हैं जिससे एक शक्तिशाली अर्थान्वेषण से भरी गूंज अनुनादित होती है जो आकाश के बदलते रंगों, जागतिक, दैहिक और सूक्ष्म अनुभूतियों और संवेदनाओं के द्वारा अपनी 'टैक्स्टुअलिटी‘ का सृजन करती है।