प्रेम जो शास्त्रों में या सामाजिक विचारकों ने सुझाया है वो गूंगे को गुड़ खिलाने के समान है यानि उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता ठीक उसी तरह जैसे किसी गूंगे व्यक्ति को गुड़ खिला दे और बाद में उससे उसका स्वाद पूछे जिसे वो व्यक्त नहीं कर सकता, यानि प्रेम की अनुभूति अकथनीय है, जबकि रोमांच, अश्रुविलाप, प्रकम्पा आदि प्रेम के आधुनिक रूप होने लगे हैं, जो प्रेम शब्द को पूरा नहीं करते।