खंडूड़ी जी से सांस्कृतिक प्रफंट में कुछ प्रत्याशा करना एक निरर्थक स्वप्न था, क्योंकि उनके फौजी दिमाग में कल्चर का मतलब ही होता है दायां मुड़-बायां मुड़, विश्राम-सावधान।
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राज्य के शुरू में जो मुख्यमंत्री बने उन महोदय के अपने हाथ-पांव ही अपने नियंत्रण में नहीं रहते थे तो राज्य के नियंत्रण की प्रत्याशा करना सिर्फ एक पागल का ख्वाब ही हो सकता था।