परदे पर, यह फबता हुआ गीत उतनी ही कोमल नाजनीन नलिनी जयवंत पर आया था।
3.
सानेट भी इसने क्या खूब अपने पर फबता हुआ लिखा है, जोकर कहीं का।
4.
द्विवेदीजी ऐसे गंभीर प्रकृति के व्यक्ति को भी युक्तिपूर्ण उत्तर के अतिरिक्त इनकी विनोदपूर्ण विगर्हणा के लिए ' सरगौ नरक ठेकाना नाहिं ' शीर्षक देकर बहुत फबता हुआ आल्हा ' कल्लू अल्हइत ' के नाम से लिखना पड़ा।
5.
वाह, क्या दीवान तेरा, नूर सा फबता हुआ!जिसमें ख़ुद को पा रहा हूँ, तुझसे मैं कटता हुआ!!ख़ैर दिल की बात दिल तक ही, रखूंगा यार अब!और कर भी क्या सकूंगा, मोहरा हूँ पिटता हुआ!!-बवाल...
6.
वाह, क्या दीवान तेरा, नूर सा फबता हुआ!जिसमें ख़ुद को पा रहा हूँ, तुझसे मैं कटता हुआ!!ख़ैर दिल की बात दिल तक ही, रखूंगा यार अब!और कर भी क्या सकूंगा, मोहरा हूँ पिटता हुआ!!-बवाल
7.
चलते चलते नीरज के उस गीत को चलिए फिर याद कर लें-ऎसी क्या बात है चलता हूँ अभी चलता हूँ गीत इक और ज़रा झूम के गा लूँ तो चलूँ । दिल में.............(बवाल) वाह, क्या दीवान तेरा, नूर सा फबता हुआ! जिसमें ख़ुद को पा रहा हूँ, तुझसे मैं कटता हुआ!!