ही ये मरुवासी मुनि सहज ज्ञान के सहारे सत्ता के महामरु को भी पार कर
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मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा” गुरुदेवविश्व स्तर पर आज हमारा भारत देश हर तरह से संपन्न और प्रगतिशील माना जाता...
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मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा” गुरुदेवविश्व स्तर पर आज हमारा भारत देश हर तरह से संपन्न और प्रगतिशील माना जाता
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सर्वसाधारण की शिक्षा के विषय में विचार करते हुए गुरुदेव ने अपनी चिंता इन शब्दों में प्रकट की मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा ।
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सर्वसाधारण की शिक्षा के विषय में विचार करते हुए गुरुदेव ने अपनी चिंता इन शब्दों में प्रकट की मातृ-भाषा में यदि शिक्षा की धाराप्रशस्त न हो तो इस विद्याहीन देश में मरुवासी मन का क्या होगा ।
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जैसे बिना दिग्दर्शक यन्त्रों के, केवल सहज ज्ञान के बल पर मरु पार कर लिया जाता है, वैसे ही ये मरुवासी मुनि सहज ज्ञान के सहारे सत्ता के महामरु को भी पार कर लेने की साधना करते थे: वह सरलतम जीवन और वह चरम सहजता ही उनका साध्य थी।