इश्क के पैरों मेंना जाने क्यों गम के घुंघरू बंध जाते
2.
सुध या होश में लाना या आना, २. प्रत्येक अवस्था मेंना
3.
लेखबद्ध रूप मेंना, प्रमाणित करना, गवाही देना, दृढ करना, सप्रमाण करना, तसदीक करना
4.
इश्क के पैरों मेंना जाने क्यों गम के घुंघरू बंध जाते हैं आँखों में हंसी भी हो तो भी रुखसार पर अश्क के मोती टपक जाते हैं
5.
एक पलवैसा ही थाजैसे और भी पल थेपर वो था बिलकुल कालाबाकी श्वेत धवल थेउस पल का चेहराकितना घिनौनाकितना वीभत्सकितना डरावनान सुनी किसी नेउस पल की आहटन आया नज़र घात लगाए कतार मेंना भाँप...
6.
तेरा मेरा यूँ मिलनाजैसे आकाश का धरती को तकनापूजन, अर्चन,वंदन बन आई हो मेरे जीवन में जब से दीदार किया तेरीरिमझिम सी इठलाती,मुस्काती चितवन का होशोहवास सब गुम हो गएतुम्हारे ही ख्यालों मेंना जाने कहाँ खो गएये कैसी मदहोशी छाई
7.
तेरा मेरा यूँ मिलनाजैसे आकाश का धरती को तकनापूजन, अर्चन,वंदन बन आई हो मेरे जीवन में जब से दीदार किया तेरीरिमझिम सी इठलाती,मुस्काती चितवन का होशोहवास सब गुम हो गएतुम्हारे ही ख्यालों मेंना जाने कहाँ खो गएये कैसी मदहोशी छाई...
8.
ना मस्जिद मेंना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्देमैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में, ना मैं तप मेंना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहतानहिं जोग सन्यास मेंनहिं प्राण में नहीं पिंड मेंना ब्रह्माण्ड आकास मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा मेंनहिं स्वांसों की स्वांस में खोजी होए तुरत मिल जाऊंइक पल की तलास मेंकहत कबीर सुनो भई साधोमैं तो हूँ विश्वास
9.
ना मस्जिद मेंना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्देमैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में, ना मैं तप मेंना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहतानहिं जोग सन्यास मेंनहिं प्राण में नहीं पिंड मेंना ब्रह्माण्ड आकास मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा मेंनहिं स्वांसों की स्वांस में खोजी होए तुरत मिल जाऊंइक पल की तलास मेंकहत कबीर सुनो भई साधोमैं तो हूँ विश्वास
10.
ना मस्जिद मेंना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्देमैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में, ना मैं तप मेंना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहतानहिं जोग सन्यास मेंनहिं प्राण में नहीं पिंड मेंना ब्रह्माण्ड आकास मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा मेंनहिं स्वांसों की स्वांस में खोजी होए तुरत मिल जाऊंइक पल की तलास मेंकहत कबीर सुनो भई साधोमैं तो हूँ विश्वास