जिनालयबड़े मंदिर में संवत् 1549 की आदिनाथ प्रतिमा एवं मेरु मंदिर संख्या 21 की परिेकर सहित प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा महत्वपूर्ण है।
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बड़े मंदिर में संवत् 1549 की आदिनाथ प्रतिमा एवं मेरु मंदिर संख्या 21 की परिसर सहित प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा महत्वपूर्ण है।
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बड़े मंदिर में संवत् 1549 की आदिनाथ प्रतिमा एवं मेरु मंदिर संख्या 21 की परिेकर सहित प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा महत्वपूर्ण है।
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युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ में उपस्थितों के नाम गिनाते हुए दुर्योधन कहता है कि मेरु मंदिर पर्वतों के मध्य शैलोक्ष नदी के किनारे निवास करने वाले खस-एकासन, पारद, कुलिंद, तंगव और परतंगण नामक पर्वतीय राजा काले रंग का चंबर और पिपीलिका जाति का स्वर्ण लाए थे।
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युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ में उपस्थितों के नाम गिनाते हुए दुर्योधन कहता है कि मेरु मंदिर पर्वतों के मध्य शैलोक्ष नदी के किनारे निवास करने वाले खस-एकासन, पारद, कुलिंद, तंगव और परतंगण नामक पर्वतीय राजा काले रंग का चंबर और पिपीलिका जाति का स्वर्ण लाए थे।
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त्रिलोकतीर्थ परिसर मे ध्यान केन्द्र, समवशरण, नन्द्वीश्वर द्वीप, त्रिकाल चौबीसी, सहस्त्रकूट चैत्यालय, विदेह तीर्थकर, मेरु मंदिर, कमल मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, निर्वाण भूमी एवं तीस चौबीसी आदि कृतियों के साथ 184 फ़ुट उत्तुन्ग त्रसनाली की रचना में नरक स्वर्ग आदी के साक्षात् दृश्य दर्शनीय हैं।