अशफ़ाक़ को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा-“तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी परले दर्जे की है।
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अशफाक को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा-“तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी परले दर्जे की है।
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अशफाक को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा-“तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब”' से भी परले दर्जे की है।
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अशफाक को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं ; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा-” तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और गालिब से भी परले दर्जे की है।
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* _मैंने आध्यात्म ग्रंथों को पढ़ा अवश्य है, लेकिन परमेश्वर, ईश्वर, ईश्वरीय सत्ता, भगवान, देवी-देवताओं की प्रार्थना का कोई ढंग या सलीका अथवा-“ उससे ”-' बात करने, निवेदन करने, कुछ मांगने और शर्त बदने '-की अक्ल मुझमे नहीं है! भाई मेरे, _यहाँ एक प्रतियोगिता-सी, एक बाजी लगी है! आदमी और आस्था में!! “ अच्छा! देखते हैं! अगर, अगर, अगर मेरी यह मुराद पूरी हो गई, तो मैं मान जाऊँगा! ”