वे दम्भ से विधिहीन करते नाम ही के यज्ञ हैं || १६. १७ ||
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विधिहीन विधि विजय की इच्छा-रहित कर्म तथा प्रतिरोध-रहित मनःस्थिति ही प्राकृतिक कृषि के सबसे पास पहुंचाता है जब हम इस तथ्य को समझ लेते हैं कि, आनंद और सुख पर अधिकार करने की कोशिश में हम उसे खो बैठते हैं, तो हम प्राकृतिक कृषि के सार को भी पकड़ लेते हैं।