विश्वनाथ प्रसाद मिश्र वाक्य
उच्चारण: [ vishevnaath persaad misher ]
उदाहरण वाक्य
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- 6. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र-वीरकाल,
- संपा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, प्रसाद परिषद, वाणीवितान, ब्रह्मनाल, वाराणसी
- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र उर्फ विस्सू भइया
- आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जी ने भी सभी दोषों को नहीं लिया है।
- आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का जन्म काशी के ब्रह्मनाल मुहल्ले में हुआ था।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे वीर-गाथा काल नाम दिया है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे वीर-गाथा काल नाम दिया है।
- पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार-' ये स्वच्छन्द धारा के रीति मुक्त कवि हैं।
- आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को ‘श्रृंगार काल ' नाम देने का आग्रह किया है.
- इसके बाद आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जी की काव्यांग कौमुदी तीन-चार कलाओं में प्रकाशित हुई थी।
- इस गं्रथ की पं0 विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डाॅ0 रसाल एवं डाॅ0 नगेन्द्र ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
- वहीं मिश्रबंधुओं ने इसे ‘अलंकृत काल ' कहा है, जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल इसे ‘रीतिकाल' और पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ‘श्रृंगार काल' संज्ञा देते हैं.
- हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय उनके अवदान पर 'आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के प्रदेय का अनुशीलन: पाठ-सम्पादन का विशेष सन्दर्भ'विषयक शोध-कार्य करा रहा है।
- पंथ और संप्रदाय में अंतर करते हुए आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र मानते हैं कि पंथ वह है जिसमें विचार भले ही प्राचीन हों किन्तु आचार नया हो।
- आचार्य द्विवेदी जी, पद्म सिंह शर्मा, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डाक्टर रामकुमार वर्मा, श्यामसुंदर दास, डॉ रामरतन भटनागर आदि हैं।
- विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय स्तर पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने सोरों (एटा) की समस्त सामग्री को अप्रामाणिक, तर्कहीन, निराधार तथा जाली सिद्ध कर दिया था।
- आचार्य केशवप्रसाद मिश्र, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे अनेक मनीषियों से प्राप्त वैदुष्य-संस्कार तथा आधुनिक भाषाओं के साहित्य का गंभीर अध्ययन उनकी आस्वाद-क्षमता को विशिष्ट बनाता है।
- यों तो संदर्भ आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र की भाषा दृष्टि का है, लेकिन यहाँ इसे भाषा की राजनीति के नए चिंताजनक उभार के संदर्भ में विमर्श हेतु उद्धृत करने की अनुमति चाहता हूँ-
- आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के शब्दों में-‘‘ स्वच्छन्द धारा का साध्य काव्य और साधन भी काव्य था।.................. जो साध्य पर ध्यान रखकर साधन पर ध्यान रखता है, उसका साध्य-साधन समन्वय बना रहता है।
- उदाहरण के लिए, नामवर सिंह ने लिखा कि अगर विश्वनाथ प्रसाद मिश्र और नंद दुलारे बाजपेयी जैसे लोग रामचंद्र शुक्ल की परंपरा का हिस्सा होने का दावा करते हैं तो इससे रामचंद्र शुक्ल में अंतर्निहित अंतर्विरोधों का पता चलता है ।
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