ऐसे में भाषा की शुचिता, मानकता, व्याकरणिकता आदि मुद्दों पर बहुत खुले मन से विचार करने की आवश्यकता है।
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ऐसे में भाषा की शुचिता, मानकता, व्याकरणिकता आदि मुद्दों पर बहुत खुले मन से विचार करने की आवश्यकता है।
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यद्यपि लेखक ने भाषा मिश्रण को खुले मन से स्वीकार किया है, तथापि ऐसे प्रयोगों की व्याकरणिकता पर भी विचार करने की आवश्यकता थी जो मानक के रूप में स्वीकृत न होते हुए भी शैलीभेद के रूप में प्रचुरता में प्रयुक्त हैं.