अभिप्राय यह है कि शुक्तिका में जो रजत का भ्रम होता है।
2.
हड्डी के तलीय सतह से दो प्रक्षेपण (pro-fections) निकले होते हैं, जिन्हें ऊर्ध्व एवं मध्यवर्ती शुक्तिका (nasal choncha) कहते हैं।
3.
यहाँ प्रातिभासिक रजत की उत्पत्ति नहीं होती है अपितु नेत्रदोष, दूरत्व तथा अस्फुट आलोक आदि दोषों के कारण शुक्तिका के अपना धर्म शुक्तित्व का ग्रहण नहीं हो पाता है, किन्तु सादृश्य एवं चाकचिक्य आदि के कारण रजतत्त्व रूप धर्म की कल्पना के बल पर वह शुक्तिका रजतत्वरूप से परिग्रहीत हो जाती है, जिसे भ्रम कहते हैं।
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यहाँ प्रातिभासिक रजत की उत्पत्ति नहीं होती है अपितु नेत्रदोष, दूरत्व तथा अस्फुट आलोक आदि दोषों के कारण शुक्तिका के अपना धर्म शुक्तित्व का ग्रहण नहीं हो पाता है, किन्तु सादृश्य एवं चाकचिक्य आदि के कारण रजतत्त्व रूप धर्म की कल्पना के बल पर वह शुक्तिका रजतत्वरूप से परिग्रहीत हो जाती है, जिसे भ्रम कहते हैं।