1. मसीही सखापन (अन्तरंग-मैत्री) के लिए हर एक की आवश्यकता
2.
[८] सख्य कर्म-किसी भी कर्म को सखापन, मित्रता पूर्वक करना.
3.
सखापन वाष्प बन कर उड़ गया. मन भारी हो गया. अंतर्मन आर्तनाद से भर उठा.
4.
सख्य कर्म का जीवन में लागू करना = सखापन या मित्रता पूर्वक संज्ञा के साथ व्यवहार करना विशेष करके मित्र दुःख के दिनों में मददगार होता है अपनी कमाई को संकट में पड़े दोस्त को आधी दे देता कोई बिना शर्त के. शिक्षा, व्यापार, रिश्ता, संकट का समय. उस समय मित्र भाव होना जरूरी है.