सविराम ज्वर को विषम ज्वर के नाम से भी जाना जाता है।
4.
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को सविराम ज्वर होने के कारण यह ज्वर बदल-बदलकर आता है।
5.
शरीर से पसीना अधिक आता है फिर बुखार ठीक हो जाता है और कभी सविराम ज्वर और कभी सन्निपात हो जाता है।
6.
जब सविराम ज्वर एक ज्वर में बदल जाए तो समझना चाहिए कि रोग खतरनांक हो रहा है जो रोगी के लिए गंभिर बातें हैं।
7.
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी में सविराम ज्वर की अवस्था में रोग के कई लक्षण साफ से दिखाई नहीं दें, ऐसी अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए डियुई, बोरिक और ऐन्सूट्ज औषधि का उपयोग करना चाहिए।
8.
बुखार शुरू होने की अवस्था में तेज प्यास लगना, जब यह न पता लगे कि सविराम ज्वर है या स्वल्प-विराम ज्वर है, शरीर में जलन होती है, बेचैनी होती है और मृत्यु का डर भी होता है।
9.
शरीर के किसी भी अंश में जलन होने या किसी तरह का जहर खून के साथ मिल जाने पर बुखार हो जाता है जो बुखार एक बार ठीक होकर दुबारा से आ जाता है तो उसे सविराम ज्वर या विषम ज्वर कहते हैं।
10.
यूरोप में उन दिनों मलेरिया महामारी का रूप ले रहा था, परम्परागत दवा कुनैन अपेक्षित रूप से कारगर नहीं हो रही थी, डा हैनिमैन ने सिन्कोना पेड़ की छाल का रस को स्वंय पर प्रयोग कर देखा और इससे उनके शरीर मे उत्पन्न लक्षणों को (मानसिक और शारीरिक) सविराम ज्वर और मलेरिया के मरीज के लक्षणों के सादृश्य पाया, इसी सिन्कोना का सूक्ष्म मात्रा उन लक्षणों वाला ज्वर को ठीक करने मे पूर्ण सक्षम था।