वो एक उलझे सूत का गोला था रंग-बिरंगे धागे थे ढेर सारी गांठे थी उससे कैसे गलीचा बनता?
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रुई चलता है चरखा! अहर्निश......... कपास की रुई का ताना बाना! सूत का गोला, पचरंगी चोला, यादों में टिमटिमाती है, उजली उजली, साँची साँची रुई! चोले के मन को रंग बिरंगे सपने, सुरों की उठान सौंप जाती है रुई! अवसाद सोखते पुराने पड़ते, कपड़े के मन को अक्सर हल्का कर जाती है रुई!