इस तरह से देखें तो पता चलता है िक भारत में सैनिक डाक संगठन बीते दो सदियों से अधिक से सेना की सेवा कर रहा हैं.
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1969 में अनुसूचित प्रेषण सेवा के तहत भेजी जानेवाली सैनिक डाक को सिग्रल कोर के नियंत्रण से हटा कर सेना सेवा कोर के हवाले किया गया.
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1867 में एबीसीनिया में जानेवाली सैनिक टुकड़ी के साथ भी सैनिक डाक घर भेजा गया. इस दौरान कई अभियान में डाक हरकारे और खच्चर गए.माल्टा तथा दूसरे अफगान युद्द में 1882 में सेना डाक की बहुत छोटी टीम ने बड़े कामों को अंजाम दिया.
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1896 में सूडान तथा 1903 में सोमालिया में ये डाक घर रहे. 1900-1904 तक चीन और तिब्बत में सैनिक डाक घरों ने सराहनीय सेवाऐं दीं.प्रथम विश्वयुद्द में तो सेना डाक सेवा के कई जवान शहीद हुए.उस दौरान पनडुव्बियों के आतंक के चलते कई जगहों पर डाक सेवाऐं काफी बाधित रही थी.
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सैनिक डाक घर रोज जवानों के बीच सात लाख से ज्यादा पत्रों का वितरण तो करते ही हैं, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को पहुंच कर देश दुनिया से उनको हमेशा करीब से जोड़े रखते हैं.सेना की यूनिटें जहां जाती हैं,जवानो को डाक सेवा उनकी जगह पर ही प्रदान की जाती है.असैनिक डाक घरों की तरह उनको घर या ठिकाना बदलने पर बार-बार अपना पता बदलने की जरूरत नहीं है.