प्रथ्वी पिण्ड रूप में (स्थूल आकृति के रूप में) जैसी आप देखते हैं ।
2.
जीव वह सूक्ष्म आकृति है जो आत्म ज्योति और स्थूल आकृति दोनों से युक्त रहते हुये भी दोनों से अलग अपना रूप, कार्य एवं कार्य क्षेत्र के रूप में क्रियाशील तथा उसके परिणाम स्वरूप पाप-पुण्य भुगतता रहता है।
3.
यह आत्म ज्योति जैसे ही किसी स्थूल आकृति से सम्बंधित होती है अथवा सम्बन्ध स्थापित करती है वैसे ही इन दोनों रूपों (आत्म ज्योति और स्थूल शरीर) से अलग एक तृतीय रूप धारण करती है अथवा तीसरे रूप में परिवर्तित हो जाती है जो सूक्ष्म आकृति या सूक्ष्म शरीर या जीव है।