ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि - ” साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।
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ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि - ” साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।
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मानता हूँ कि भावना जैसी स्वच्छन्द , अव्याहत गति वाली वस्तु को मात्र एक लेख में कैद करना कदापि सम्भव नहीं हो सकता परन्तु किंचित प्रयास तो किया ही जा सकता है।
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मानता हूँ कि भावना जैसी स्वच्छन्द , अव्याहत गति वाली वस्तु को मात्र एक लेख में कैद करना कदापि सम्भव नहीं हो सकता परन्तु किंचित प्रयास तो किया ही जा सकता है।
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जिस प्रकार पक्षी अपना आराम का समय आया देख अपने-अपने खेतों का सहारा ले रहे हैं उसी प्रकार हिंस्र श् वापद भी अपनी अव्याहत गति समझ कर कंदराओं से निकलने लगे हैं।
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कात्यायनको छोड़कर किसी अन्य ऋषि ने ब्राह्मणभाग के वेद होने में प्रमाण नहीं दिया है- यह कथन भी आधार रहित है , क्योंकि भारतीय दृष्टि से किसी भी आप्त ऋषि का प्रामाण्य अव्याहत है।
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भगवान का वही रूप अपनी लीला से देव तिर्यक और मनुष्य आदि चेष्टाओं से युक्त सर्वशक्तिमय रूप धारण करता है , इन रूपों में अप्रमेय भगवान की जो व्यापक एवं अव्याहत चेष्टा होती है वह सम्पूर्ण जगत के उपकार के लिये होती है।
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श्यामा ने , अव्याहत भाव से गान की पंक्ति पूरी करके उलाहने से कहा , '' बड़ी मुस्तैदी दिखा रहे थे न तैयार होने में - मैं स्टेशन से आ भी गयी और तुम नहा कर भी नहीं चुके ? '' तनिक-सा रुक कर , '' कब आने वाले थे तुम - कल सवेरे ? ''
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श्यामा ने , अव्याहत भाव से गान की पंक्ति पूरी करके उलाहने से कहा , '' बड़ी मुस्तैदी दिखा रहे थे न तैयार होने में - मैं स्टेशन से आ भी गयी और तुम नहा कर भी नहीं चुके ? '' तनिक-सा रुक कर , '' कब आने वाले थे तुम - कल सवेरे ? ''