विश्व स्तर पर दुर्लभ प्रजातियों में शामिल पक्षी सोशिएबल लैप विंग इन दिनों चूरू जिले के तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य में देखी जा रहा है ।
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विश्व स्तर पर दुर्लभ प्रजातियों में शामिल पक्षी सोशिएबल लैप विंग इन दिनों चूरू जिले के तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य में देखी जा रहा है ।
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इसके अलावा जो अन्य प्राणी इस वन में विचरते पाए जाते हैं , उनमें नीलगाय , सांभर , चौसिंघा , कृष्णमृग , रीछ , चीता और सर्वव्यापी बंदर हैं।
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इसके अलावा जो अन्य प्राणी इस वन में विचरते पाए जाते हैं , उनमें नीलगाय , सांभर , चौसिंघा , कृष्णमृग , रीछ , चीता और सर्वव्यापी बंदर हैं।
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इतना ही नहीं वन विहार में बहुतायत में सांभर , चीतल , नीलगाय , कृष्णमृग , लंगूर , लाल मुंह वाले बंदर , जंगली सुअर , सेही और खरगोश हैं।
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इतना ही नहीं वन विहार में बहुतायत में सांभर , चीतल , नीलगाय , कृष्णमृग , लंगूर , लाल मुंह वाले बंदर , जंगली सुअर , सेही और खरगोश हैं।
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ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य ब्रह्मचारियों को बिछाने के लिए क्रमश : कृष्णमृग , रुरुमृग , और बकरे के चर्म और पहनने के लिए सन , दुकूल और भेड़ी के बालों के कम्बल रखने होते हैं।
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ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य ब्रह्मचारियों को बिछाने के लिए क्रमश : कृष्णमृग , रुरुमृग , और बकरे के चर्म और पहनने के लिए सन , दुकूल और भेड़ी के बालों के कम्बल रखने होते हैं।
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इनमें केन्या के मसाईमारा अभ्यारण्य में विचरण करते हाथियों के समूह , दो सींग का गेंडा , कृष्णमृग , तेंदुओं के साथ ही कर्नाटक के काबिनी में हाथी , राजस्थान के रणथम्भौर में बाघ और तालछापर में विचरण करते कृष्णमृग व सांभर की अटखेलियां कलाप्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं।
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इनमें केन्या के मसाईमारा अभ्यारण्य में विचरण करते हाथियों के समूह , दो सींग का गेंडा , कृष्णमृग , तेंदुओं के साथ ही कर्नाटक के काबिनी में हाथी , राजस्थान के रणथम्भौर में बाघ और तालछापर में विचरण करते कृष्णमृग व सांभर की अटखेलियां कलाप्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं।