| 11. | और फिर क्या ! तृष्णा भी विक्रम के
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| 12. | पुरुषत्व की तृष्णा बढती ही जाती है ।
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| 13. | स्पर्श करते ही तृष्णा के मन में काम
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| 14. | तृष्णा में इतना यह परिवर्तन क्यों ? लेकिन इस
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| 15. | असंतोष , अतृप्ति , तृष्णा मालूम नहीं ।
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| 16. | असंतोष , अतृप्ति , तृष्णा मालूम नहीं ।
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| 17. | स्वार्थलिप्सा , अहंता एवं तृष्णा की अबाधित तुष्टि।
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| 18. | घर लौटते हुए मैं और तृष्णा मंद मंद
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| 19. | जो वीत तृष्णा और निष् कलुष है ,
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| 20. | भर गई है तृष्णा से जोली … . जनक देसाई
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