जेल की काल कोठरियों से , झुग्गी झोंपडियों रूपी भुखमरी के गोदामों से लाख दर लाख इन्सानों का , शोषित मजदूरों का , पूंजीवादी दंरिन्दों द्वारा धैर्य या दयाहीनता से खून चूसते हुए देखते रहना और मानव ऊर्जा का व्यर्थ होते देखना जो कि कम से कम सामान्य बुध्दि वाले आदमी को भी डर से कंपा दे और अधिक पैदावार को जरूरतमंदों में बांटने की बजाय समुद्रों में फेंकने वालों उन राजाओं के महलों में जिनकी नींव में मानव की हड्डियां लगी हैंउसे यह सब देखने दो और कहने दो कि , '' सब कुछ ठीक है।