हनुमंत नायडू , श्रध्दा पराते , सागर खादीवाला , नटखटी नागपुरिया , राजेन्द्र पटोदिया कितने ही आत्मीय साहित्यिक मित्र मेरे अग्रज रचनाकार वहां रहे हैं , जिनके बीच मैंने रचनाकर्म शुरू किया था।
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उसी में यह मस्ती आती है , यह पागलपन होता है , यह नशा रहता है और वही मन को मजबूर कर देता है कि चुपचाप बैठ जाए , नटखटी या शैतानियत न करे।
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उसी में यह मस्ती आती है , यह पागलपन होता है , यह नशा रहता है और वही मन को मजबूर कर देता है कि चुपचाप बैठ जाए , नटखटी या शैतानियत न करे।
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हवस , तमस और पशुत्व इसमें, सरल,उज्जवल मनुष्य्ता भी, दया भी है,क्रूड़ता भी इसमें, मनस भी है,देवता भी इसमें, है सदगुणी तो कुकर्मी भी ये, गौ नेक फ़ितरत अधर्मी भी है, बुज़ुर्ग़ भी, बचपना भी इसमें, है धीर-गम्भीर नटखटी भी।