किसी के साथ होने भर से तुम्हारे हृदय में गहरे कुछ परितुष्ट हो जाता है …
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बच्चनजी की इस व्याख्या से न सिर्फ दिनेशजी , बल्कि हम सभी चकित-विस्मित और परितुष्ट हुए थे।
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बिना भाग्य के कुछ नहीं होता ' -इस रूप में परितुष्ट होकर बैठ रहना भाग्य अथवा वृष्टि नामक तुष्टि है ।
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कविता जी , एक परितुष्ट कर देने वाली पोस्ट है | धार्मिक घुमक्कड़ों के लिए तो कुंजी समझिये , कुंजी नहीं बल्कि एक
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पाठक की सीमाओं और अपेक्षाओं के प्रति उदासीन रहकर की गयी रचना केवल रचयिता के अहं को परितुष्ट कर सकती है , अपने वास्तविक उद्देश्य की सिद्धि तक नहीं पहुँच पाती।
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जबकि शास्त्रीय वचनों के अनुसार ऎसे लोगों के चरणस्पर्श करने वाले लोग पाप के भागी होने के साथ ही समाज के अपराधी भी होते हैं क्योंकि इन नापाक लोगों के चरण स्पर्श करने से इन लोगोें का अहं परितुष्ट एवं तृप्त होता है तथा ये लोग समाज के स्वस्थ स्वरूप एवं आबोहवा को बिगाड़ने में अहम भूमिका में आ जाते हैं जिससे मानवता को भी खतरा बना रहता है।