नानी शब्द ने मातामही से चल कर कितने पडाव पार किये और कितनी अन्य भाषाओँ तथा बोलियों से दोस्ती गांठी इसकी कहानी कभी फुर्सत में सुनाऊंगी .
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महोदय जिस माता , पिता , दादा , दादी , प्रपितामह , मातामही एवं अन्य बुजुर्गो के लाड , प्यार , श्रम से कमाए धन एवं इज्ज़त के सहारे हम आज इस सुन्दर दुनिया में सुख पूर्वक विचरण कर रहे है .
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महोदय जिस माता , पिता , दादा , दादी , प्रपितामह , मातामही एवं अन्य बुजुर्गो के लाड , प्यार , श्रम से कमाए धन एवं इज्ज़त के सहारे हम आज इस सुन्दर दुनिया में सुख पूर्वक विचरण कर रहे है .
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही, पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये, जो अब भी ऊर्जावान, जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं, जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है, जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं;
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही, पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये, जो अब भी ऊर्जावान, जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं, जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है, जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं;
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स्त्री वर्ग में भी कौन २ गुरु हैं - इसकी भी परिगणना की गयी है - नानी , मामी , मौसी , सास , दादी , अपने से बड़ी जो भी हो , तथा जो पालन करने वाली है ! देखें - मातामही मातुलानी तथा मातुश्च सोदरा ! श्वश्रूः पितामही ज्येष्ठा धात्री च गुरवः स्त्रीषु !!
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पितृपूजन में दिवंगत पिता , पितामह , प्रपितामह , माता , मातामह , प्रमातामह , मातामह ( नाना ) , प्रमातामह , वृद्धमातामह , मातामही ( नानी ) एवं इससे जुड़े पूरे परिवार से संबंधित दिवंगत कोई भी सदस्य यथा बहन , काका , मामा , बुआ , मौसी , ससुर आदि का भी महत्व रहता है।
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पितृपूजन में दिवंगत पिता , पितामह , प्रपितामह , माता , मातामह , प्रमातामह , मातामह ( नाना ) , प्रमातामह , वृद्धमातामह , मातामही ( नानी ) एवं इससे जुड़े पूरे परिवार से संबंधित दिवंगत कोई भी सदस्य यथा बहन , काका , मामा , बुआ , मौसी , ससुर आदि का भी महत्व रहता है।
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जिस माता , पिता, दादा, दादी, प्रपितामह, मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड, प्यार, श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे आप सुखपूर्वक रहते हैं, तो आज जब उनका शरीर पांच तत्व में विलीन हो गया है तो आपका यह परम कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए कम से कम और कुछ नहीं कर सकते तो तर्पण तो कर दें।
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही , पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये , जो अब भी ऊर्जावान , जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं , जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है , जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं ; कितनी उपेक्षा हो रही है !