उसके मूल में एक ओर सूक्ष्म आध्यात्मिक विश्वासों के प्रति संदेह और दूसरी ओर नैतिक और सामाजिक विधान के प्रति विद्रोह का भाव है .
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आपकी सभी प्रस्तावनाएँ विचार सरणियाँ अनुकरणीय है . ये हो जाए तो बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाए जड़ हो चुके सामाजिक विधान में परिधान में .
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हिन्दू धर्म में एक मात्र स्थिर और सुनिश्चित वस्तु है सामाजिक विधान , किन्तु तब भी हिन्दू धर्म का सार आध्यात्मिक अनुशासन है , सामाजिक अनुशासन नहीं।
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वाराणसी में ही हर साल 40 हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है और गंगा का हर किनारा इस धार्मिक और सामाजिक विधान के लिए महत्वपूर्ण है।
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वाराणसी में ही हर साल 40 हजार से अधिक शवों का अंतिम संस् कार हो रहा है और गंगा का हर किनारा इस धार्मिक और सामाजिक विधान के लिए महत् वपूर्ण है।
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अब इस नये वैश्विक राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक विधान में फ़ासीवाद के सत्ता में आने की सूरत में पूरा रूप और रास्ता क्या होगा , यह अलग से शोध का विषय है।
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आज हम जिन जटिल परिस्थितियों में रहते हैं , उनमें ÷दलित' कहलाने वाले सभी लोग उन संरचनाओं को ध्वस्त करके एक समतामूलक और न्यायपूर्ण सामाजिक विधान कायम करने में रुचि लेते हुए नहीं देखे जाते।
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ऐसी हिंसा और शोषण से बचाने के लिए और इनके वैध अधिकारों के संवर्धन के लिए , भारत सरकार ने पहले विविध दंड संबंधी सिविल और श्रम कानून बनाए थे , जिन्हे सामाजिक विधान कहते है ।
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धर्म के जटिल जाल में सबसे पहले आता है सामाजिक विधान , क्योंकि मनुष्य का जीवन कहीं अधिक अनिवार्यरूप में समष्टि के लिये ही है , यद्यपि सर्वाधिक अनिवार्य रूप में वह आत्मा परमात्मा के लिये है।
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हथियार नायर मानसिकता और सत्ता का अभिन्न अंग थे , और दमनकारी क़ानून के साथ संयुक्त होने पर नायरों की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचा, हालांकि कतिपय सामाजिक विधान स्वयं नायरों द्वारा प्रेरित थे, जैसे कि कर्नवन को तारावाड के अपने नेतृत्व का कुछ (और बाद में पूरा) फल अपने बच्चों को देना अनुमत करते हुए उत्तराधिकार क़ानून में परिवर्तन.