अनुचित नहीं गर्व क्षणभंगुर वर्तमान की जय का पर , अपने में डूब कभी यह भी तूने सोचा है , तेरे वर्तमान मन पर जिनका भविष्य निर्भर है , अनुत्पन्न उन शत-सहस्र मनुजॉ के मुखमंडल पर कौन बिम्ब , क्या प्रभा , कौन छाया पड़ती जाती है ?
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अनुचित नहीं गर्व क्षणभंगुर वर्तमान की जय का पर , अपने में डूब कभी यह भी तूने सोचा है , तेरे वर्तमान मन पर जिनका भविष्य निर्भर है , अनुत्पन्न उन शत-सहस्र मनुजॉ के मुखमंडल पर कौन बिम्ब , क्या प्रभा , कौन छाया पड़ती जाती है ?
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फलत : प्रागभाव के अभाव हो जाने पर वस्तु अनादि ( अनुत्पन्न ) प्रध्वंसाभाव के अभाव में अनन्त ( विनाशका अभावशाश्वत विद्यमान ) , अन्योन्याभाव के अभाव में सब सबरूप ( परस्पर भेद का अभाव ) और अत्यन्ताभाव के अभाव में स्वरूप रहित ( अपने-अपने प्रातिस्विक् रूप की हानि ) रूप हो जायेगी।
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/ ref > , चतुष्कोटिकोत्पादानुपपत्तियुक्ति ref > रूप आदि वस्तुएं , स्वभावत : अनुत्पन्न हैं , एक हेतु से अनेक फल , अनेक हेतुओं से एक फल , अनेक हेतुओं से अनेक फल तथा एक ही हेतु से एक फल उत्पन्न न होने से / ref > तथा प्रतीत्यसमुत्पादयुक्ति ref > रूप आदि धर्म , नि : स्वभाव हैं , प्रतीत्यसमुत्पन्न होने से।
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/ ref > , चतुष्कोटिकोत्पादानुपपत्तियुक्ति ref > रूप आदि वस्तुएं , स्वभावत : अनुत्पन्न हैं , एक हेतु से अनेक फल , अनेक हेतुओं से एक फल , अनेक हेतुओं से अनेक फल तथा एक ही हेतु से एक फल उत्पन्न न होने से / ref > तथा प्रतीत्यसमुत्पादयुक्ति ref > रूप आदि धर्म , नि : स्वभाव हैं , प्रतीत्यसमुत्पन्न होने से।