याज्ञवल्क्य [ 271 ] ने भी तीन वंशजों को बिना कोई भेद बताए एक स्थान पर रख दिया है - ' अपने पुत्र , पौत्र एवं प्रपौत्र से व्यक्ति वंश की अविच्छिन्नता एवं स्वर्ग प्राप्त करता है।
22.
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ' - अर्थात ‘सूत्र' अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है।
23.
सिंह बनकर खाने के लिए अगर आप तैयार दिखाई दे रहे हैं तो इससे स्पष्ट है कि आप पाणिनि को और उसकी एकाग्रता को , अविच्छिन्नता को , विद्वत्व को , नैपुण्य को , बोध को स्वीकार करते चल रहे हैं .
24.
सिंह बनकर खाने के लिए अगर आप तैयार दिखाई दे रहे हैं तो इससे स्पष्ट है कि आप पाणिनि को और उसकी एकाग्रता को , अविच्छिन्नता को , विद्वत्व को , नैपुण्य को , बोध को स्वीकार करते चल रहे हैं .
25.
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘ मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ' - अर्थात ‘ सूत्र ' अविच्छिन्नता का प्रतीक है , क्योंकि सूत्र ( धागा ) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है।
26.
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘ मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ' - अर्थात ‘ सूत्र ' अविच्छिन्नता का प्रतीक है , क्योंकि सूत्र ( धागा ) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है।