मगर माबूदे - बेदारी ! कहीं फितरत बदलती है धुएं को गर्म होने दे , भड़कना अब भी आता है मेरी जानिब से इतमीनान रख , आतिशनवा रहबर जरा बादल तो टकराए , कड़कना अब भी आता है जरा मौके की तलाश है , ठीक समय ठीक अवसर , ठीक भूमि मिल जाए , ठीक सत्संग मिल जाए , तो अभी राख गिर जाए और अंगारा फिर प्रकट हो जाए।
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डेढ़ हफ्ता से जोत्सना दीदी जीवन-लीला खतम कै लेंगी का बात सोच-सोच के अपना एक जगह अस्थिर बैठना-ठाड़ा होना तक मोहाल किये थीं , फिर आखिरकार जब तै कर लिया कि शनिच्चर की रात फैसले की रात होगी तो बियफे से जो बिजली कड़कना चालू हुआ और मुसलाधारी का खपड़ा और टीना और दुआरी और अंगना में भहरना, जोत्सना दीदी सुसैडी का आइडिया पिछवाड़ा का दीवार का पीछे- प्राइबेट कपड़ा का माफिक- फिलहाल के लिए फेंक आई हैं.
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नंगा दिन-दहाड़े का डकैती ! अब केस नम् मर थीरी पूछिये ? डेढ़ हफ्ता से जोत् सना दीदी जीवन-लीला खतम कै लेंगी का बात सोच-सोच के अपना एक जगह अस्थिर बैठना-ठाड़ा होना तक मोहाल किये थीं , फिर आखिरकार जब तै कर लिया कि शनिच् चर की रात फैसले की रात होगी तो बियफे से जो बिजली कड़कना चालू हुआ और मुसलाधारी का खपड़ा और टीना और दुआरी और अंगना में भहरना , जोत् सना दीदी सुसैडी का आइडिया पिछवाड़ा का दीवार का पीछे- प्राइबेट कपड़ा का माफिक- फिलहाल के लिए फेंक आई हैं .