| 21. | यह घोर कर्म है और अत्यंत निन्दनीय है .
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| 22. | हमारे भाव , विचार और कर्म सभी मूर्छित हैं.
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| 23. | प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने विहित कर्त्तव्य कर्म का भगवत्प्रीत्यर्थ
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| 24. | कर्म ही पूजा है . .. और मैं ...
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| 25. | फिर भी कर्म किये जाना अपना कर्त्तव्य है।
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| 26. | मनुष्य अपने कर्म के अनुसार फल भोगता है।
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| 27. | हमारे ही पहले के कर्म खराब थे ।
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| 28. | समृद्धि भाग्य या कर्म का लक्ष्य नहीं है।
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| 29. | कर्म वेद ( जैसे ज्ञानभण्डार) से ही मालूम होते
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| 30. | उसके बाद ही आगे का कर्म होता है।
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