लिखे को तो सब पढ़ लेते हैं , तू वो पढ़ जो अब तक मैनें ना लिखा,शब्दों की गहराई नापना सबके बस की बात नहीं,ग़र हो सके तो मेरे भावों के तल को छूकर दिखा,अपनी हर कविता मे से जाने कितने शब्द मिटा दिए,दिल की बात ज़ाहिर ना कर दें, ये सोच कर सब छिपा दिए,ढक दिया उन्हे
22.
गोबर और चारे से सने हाथों को चुन्नी से पोंछती पम्मी , चुपचाप हेमंत को देखती रह गई मानो उसके इरादों की गहराई नापना चाहती हो , इससे भी ज्यादा सामने खड़े हेमंत की धातु पहचानना चाहती हो - क्या वह उसका और उसकी विषम परिस्थितियों का बोझ उठा पाएगा - बिना मुड़े और टूटे , उसके विकलांग मन की बैसाखी बन पाएगा ...